उहदा रब्ब नहीं रुस्दा लख्ख वेरी---जिह्नुं यार मनाउन दा चज्ज होवे---
दो बरस पहले न्यू अग्रवाल पीरखाना दरबार में बायीं तरफ की दीवार पर दो पंक्तियाँ लिखीं होतीं थीं---
भला एथे फकीरां नू फ़िक्र काहदा--
फक्का मार के फिकरां नू खा जांदे
अब दो बरस बाद वहां आई संगत को देख कर यही लगता था कि सचमुच इन सभी लोगों के गम, दर्द, दुःख, चिंता, फ़िक्र जैसे किसी ने पल भर में उड़ा दिए हों--मैंने कुछ लोगों को जानबूझ कर कुरेदा क्या सचमुच तुम्हे कोई गम नहीं---कोई चिंता नहीं----सभी मुस्कराते हुए कहते----
भला एथे फकीरां नू फ़िक्र काहदा--
फक्का मार के फिकरां नू खा जांदे----
मुझे लगता यह सब लोग किसी खुमारी में हैं---किसी नशे में हैं----इसी लिए काम धंधा और घरबार छोड़ कर यहाँ घूम रहे हैं---पर यहाँ कोई नशा नहीं था---सब लोग एक खेल खेलने आये थे---जिंदगी का खेल---मुश्किलों से हंसते हंसते दो दो हाथ करने का खेल----अगर बाहर बने खुले मैदान में बच्चा लोग झूला झूल रहे थे---कभी ऊपर कभी नीचे---तो--बड़े लोगों में भी यही खेल चल रहा था---लेकिन मन के अंदर---दिल के अंदर---दिमाग के अंदर----ख्यालों की दुनिया में----कभी ख़ुशी कभी गम---कभी सफलता की ऊँचाई---और बन्दा आसमान पर----कभी निराशा का अँधेरा और बन्दा गम और दुःख के पाताल में---इस सारे खेल को बड़ी कुशलता से देख रहे----यहाँ इस दरबार के प्रमुख सेवादार बंटी बाबा कभी किसी को बुला लेते और कभी किसी को---कहते क्या सोच रहा है----किस चिंता में है….? सब ठीक हो जायेगा---और उस भक्त को जैसे एक नया हौंसला मिल जाता---एक नई हिम्मत---और भक्ति रस में डूब कर वह फिर तारो ताज़ा हो जाता----किस्सी के मन में कुछ आशंका होती या फिर उसे लगता की इतना बड़ा दुःख पल भर सचमुच दूर हो जायेगा---? इधर भक्त के मन में यह सवाल आता उधर बंटी बाबा बोल उठते---जा उधर पीर बाबा से जो मांगना है मांग ले----यहाँ तेज़ तरार लोग भी आते…मन में शैतानी छुपी होती---चेहरे पे भोलापन लिए होते---सजदा करते----नाक रगड़ते---फिर धीरे से कहते बंटी बाबा हमारा काम क्यूं बिगड़ा हुआ है---कुछ करो न----झुके हुए श्रद्धालू को देखते ही बाबा पल भर के लिए आँख बंद करते और कहते--शराब पीना छोड़ दे----पर नारी की तरफ देखना छोड़ दे--सब ठीक हो जायेगा----जो भक्त कहता बाबा लो आज से सचमुच सब बुरे काम छोड़े----बाबा उनकी पीठ भी थपथपाते …शाबाशी भी देते---लेकिन साथ ही कहते---वादा मेरे सामने नहीं---वहां ---उधर पीरों की तरफ मूंह करके करो--साथ ही चेतावनी भी देते---अगर वादा टूटा तो तुझे पीर बाबा ही देखेंगे----मानो बाबा एक झूले पे बिठा देते…जिंदगी के संतुलन का एक झूला--जिसपे हम सभी सवार हैं--लेकिन फिर भी उसे देख नहीं पाते----थोड़ी सी ख़ुशी मिली तो भी सब भूल जाते हैं---थोडा सा गम मिला तो भी दर्द से कराहने लगते हैं---बस यहाँ आने वाले को बंटी बाबा सुख दुःख--दोनों में मज़ा लेने का गुर सिख देते---और अगर कोई वादा टूटता तो वादा तोड़ने वाला किसी न किसी बहाने झूले से नीचे आ गिरता---संतुलन से बाहर आ गिरता---फिर सुख भी मज़ा न देता---और दुःख भी असहनीय हो जाता---भगवान से तार टूट जाती---जिंदगी का संतुलन बिगड़ जाता--और फिर दर्द ही दर्द---जख्म ही जख्म---बंटी बाबा वादा तोड़ कर गिरने वाले को भी आ कर उठाते----उसके घाव सहलाते---गले से लगाते----और प्यार से डांटते---तुझे कहा था न वादा मत तोड़ना--जा अब पीर बाबा को मना---रो मत---चिंता न कर---फिर से सब ठीक हो जायेगा---और पीर बाबा को मनाने के स्वर गूँज उठते----हमसर हयात निजामी जैसे जाने माने गायक यहाँ इस दरबार में आ कर गाते----काअबे वाली गली विच्च यार दा मकान ए-------और बंटी बाबा जिंदगी में संतुलन लाने का गुर बता देते कि कैसे काअबे का सम्मान भी रखना है----और बिना अपने अल्ला को नाराज़ किये यार को भी नाराज़ नहीं होने देना---बाबा बताते हैं-----यार का घर कहीं भी हो----पर यह याद रखना जरूरी है कि--
मुझे लगता यह सब लोग किसी खुमारी में हैं---किसी नशे में हैं----इसी लिए काम धंधा और घरबार छोड़ कर यहाँ घूम रहे हैं---पर यहाँ कोई नशा नहीं था---सब लोग एक खेल खेलने आये थे---जिंदगी का खेल---मुश्किलों से हंसते हंसते दो दो हाथ करने का खेल----अगर बाहर बने खुले मैदान में बच्चा लोग झूला झूल रहे थे---कभी ऊपर कभी नीचे---तो--बड़े लोगों में भी यही खेल चल रहा था---लेकिन मन के अंदर---दिल के अंदर---दिमाग के अंदर----ख्यालों की दुनिया में----कभी ख़ुशी कभी गम---कभी सफलता की ऊँचाई---और बन्दा आसमान पर----कभी निराशा का अँधेरा और बन्दा गम और दुःख के पाताल में---इस सारे खेल को बड़ी कुशलता से देख रहे----यहाँ इस दरबार के प्रमुख सेवादार बंटी बाबा कभी किसी को बुला लेते और कभी किसी को---कहते क्या सोच रहा है----किस चिंता में है….? सब ठीक हो जायेगा---और उस भक्त को जैसे एक नया हौंसला मिल जाता---एक नई हिम्मत---और भक्ति रस में डूब कर वह फिर तारो ताज़ा हो जाता----किस्सी के मन में कुछ आशंका होती या फिर उसे लगता की इतना बड़ा दुःख पल भर सचमुच दूर हो जायेगा---? इधर भक्त के मन में यह सवाल आता उधर बंटी बाबा बोल उठते---जा उधर पीर बाबा से जो मांगना है मांग ले----यहाँ तेज़ तरार लोग भी आते…मन में शैतानी छुपी होती---चेहरे पे भोलापन लिए होते---सजदा करते----नाक रगड़ते---फिर धीरे से कहते बंटी बाबा हमारा काम क्यूं बिगड़ा हुआ है---कुछ करो न----झुके हुए श्रद्धालू को देखते ही बाबा पल भर के लिए आँख बंद करते और कहते--शराब पीना छोड़ दे----पर नारी की तरफ देखना छोड़ दे--सब ठीक हो जायेगा----जो भक्त कहता बाबा लो आज से सचमुच सब बुरे काम छोड़े----बाबा उनकी पीठ भी थपथपाते …शाबाशी भी देते---लेकिन साथ ही कहते---वादा मेरे सामने नहीं---वहां ---उधर पीरों की तरफ मूंह करके करो--साथ ही चेतावनी भी देते---अगर वादा टूटा तो तुझे पीर बाबा ही देखेंगे----मानो बाबा एक झूले पे बिठा देते…जिंदगी के संतुलन का एक झूला--जिसपे हम सभी सवार हैं--लेकिन फिर भी उसे देख नहीं पाते----थोड़ी सी ख़ुशी मिली तो भी सब भूल जाते हैं---थोडा सा गम मिला तो भी दर्द से कराहने लगते हैं---बस यहाँ आने वाले को बंटी बाबा सुख दुःख--दोनों में मज़ा लेने का गुर सिख देते---और अगर कोई वादा टूटता तो वादा तोड़ने वाला किसी न किसी बहाने झूले से नीचे आ गिरता---संतुलन से बाहर आ गिरता---फिर सुख भी मज़ा न देता---और दुःख भी असहनीय हो जाता---भगवान से तार टूट जाती---जिंदगी का संतुलन बिगड़ जाता--और फिर दर्द ही दर्द---जख्म ही जख्म---बंटी बाबा वादा तोड़ कर गिरने वाले को भी आ कर उठाते----उसके घाव सहलाते---गले से लगाते----और प्यार से डांटते---तुझे कहा था न वादा मत तोड़ना--जा अब पीर बाबा को मना---रो मत---चिंता न कर---फिर से सब ठीक हो जायेगा---और पीर बाबा को मनाने के स्वर गूँज उठते----हमसर हयात निजामी जैसे जाने माने गायक यहाँ इस दरबार में आ कर गाते----काअबे वाली गली विच्च यार दा मकान ए-------और बंटी बाबा जिंदगी में संतुलन लाने का गुर बता देते कि कैसे काअबे का सम्मान भी रखना है----और बिना अपने अल्ला को नाराज़ किये यार को भी नाराज़ नहीं होने देना---बाबा बताते हैं-----यार का घर कहीं भी हो----पर यह याद रखना जरूरी है कि--
उहदा रब्ब नहीं रुस्दा लख्ख वेरी---जिह्नुं यार मनाउन दा चज्ज होवे--- --आर के तारेश
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